मुख्य समस्याः कीट नियंत्रण
पहले कीट नियंत्रण फिर कीट प्रबंधन और अब समेकित कीट प्रबंधनः समय के साथ जुगलबंदियों का यह क्रमिक विकास जहाँ एक तरफ अपनी असफलताओं को छुपाने का एक बेहतर प्रयास है वहीं दूसरी तरफ यह कीट समस्या के निरंतर विकराल होने की तरफ भी इशारा करता है।
वस्तुस्थितिः कपास की फसल में 1990 से लेकर 2001-02 तक अमेरिकन सूंडि व सफेद-मक्खी का कहर किसी से छुपा हुआ नहीं है। दि ट्रिब्युन को 24-11-2001 के अपने संपादकीय में इसको साझली पराजय व साझली शर्म कहने में कोई हिचक नही हुई थी। इसी फसल में 2007 से सात समुन्दर पार का एक पँखविहिन कमजोर सा मिलीबग नामक कीड़ा अपना लगोंट घुमा रहा है। कपास में ही खरीफ 2009 में लाल मत्कुण व श्यामल मत्कुण जैसे माइनर से पेस्ट कहलाने वाले कीड़े न जाने कहाँ से प्रमोशन पा कर पिछले साल मेजर बन बैठे थे।
कीड़ों के मामले में धान जैसी अतिसुरक्षित फसल में भी फुदकों ने किसानों की जान निकाल रखी है।
आज मुझे यह स्वीकारने में कोई झुंझलाहट नही कि मैं स्वयं कपास की फसल में स्लेटी भुंड को ही सफेद-मक्खी समझता था। मैं समय-समय पर विभिन्न कीटनाशकों का इस्तेमाल कर सफेद-मक्खी के नाम पर स्लेटी भुंड को ही खत्म कर खुश होता रहा। खरीफ 2007 में भी दैनिक पंजाब केसरी में एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक का यह ब्यान पढ कर कि मिलीबग धरती में 590 अंडे देता है, मैं इस कीट के नियंत्रण के लिये हर पांचवें-छठ्ठे दिन धरती की सतह पर ही स्प्रे करता रहा था। जबकि फिनोकोकस सोलेनोप्सिस नाम का यह मिलीबग तो थैली में अण्डे देता पाया गया।
आज मुझे कपास में हानि पहुँचाने वाले 26 किस्म के कीटों की जानकारी है। इसी फसल में पाये गये 55 किस्म के मांसाहारी कीटों एवं कीटाणुओं( 4 किस्म के परजीव्याभ, 47 किस्म के परभक्षी, एक परजीवी व 3 किस्म के फफुंदिय रोगाणु) की भी कमोबेश जानकारी है। परिणामस्वरुप पिछले चार साल से मुझे किसी भी फसल में किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल करने की आवश्यकता नही पड़ी। मेरी जानकारी में जिला जींद में ही तीन दर्जन से ज्यादा किसान है जिन्होंने पिछले तीन साल से अपनी किसी भी फसल में कीट नियंत्रण के लिये कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता ही नही पड़ी। अतः कीटों की समस्या के इस चक्रब्यूह से निकलने का रास्ता बहुत ही सीधा, सरल व आसान है। और वह है किसानों से लेकर वैज्ञानिकों तक सभी को कीटों की व्यापक पैमाने पर पहचान एवं जानकारी।
समस्या समाधान के लिये सुझावः
1. कृषि विश्वविद्यालय के कीट विभाग व कृषि निदेशालय के पास प्रदेश में बोई जाने वाली प्रत्येक फसल में पाये जाने वाले सभी कीड़ों का डाटा-बेस हो। प्रत्येक कीट की सभी अवस्थाओं के फोटों एवं जानकारी हो, परिवेश बारे जानकारी हो, खाद्य-विविधता एवं क्षमता की जानकारी हो, प्रजनन क्षमता की जानकारी हो।
2. कृषि विकास अधिकारी का कार्यालय इन्टर-नैट से जुड़ा हो जहाँ किसान इन कीटों के बारे में जानकारी ले सके।
3. प्रत्येक गांव की हर नम्बरदारी में इन्टर-नैट से जुड़े कृषि सेवा केन्द्र खोले जाये।इनके संचालन के लिये आंगनवाड़ी वर्कर की तर्ज पर निश्चित मानदेय पर कृषि सेवक नियुक्त किये जाए। इनमें से आधे कृषि सेवक महिलाएँ हो।
4. कृषि विभाग की पौध संरक्षण शाखा में नियुक्त कृषि विकास अधिकारी के लिये अपने क्षेत्र में हर फसल की नविनतम एवं पूर्ण पारिस्थितिकि तंत्र का ब्यौरा तैयार करना आवश्यक हो। इसके लिये उन्हें आवश्यक औजार व मानव संसाधन उपलब्ध करवाये जाये। इस जानकारी को तुरन्त जिले के कृषि अधिकारियों एवं कृषि सेवकों को उपलब्ध करवाया जाये।
5. कृषि विश्वविद्यालय व कृषि निदेशालय की वेब-साइटस् पर किसानों के लिये एक कोना विकसित किया जाये जहाँ किसान अपनी समस्या (कीट) मय फोटो के पेस्ट करके इस के बारे में जानकारी हासिल कर सके और अपनी समस्या का सही हल जान सके।
6. हरियाणा प्रदेश के सभी राजकीय विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले पर्यावरण के कोर्स में कीटों को भी शामिल किया जाये।
7. हरियाणा प्रदेश के देहात स्थित सभी राजकीय विद्यालयों में छठ्ठी से लेकर दसवीं तक कृषि की पढ़ाई अनिवार्य हो। इन्ही विद्यार्थियों में से केवल उनकों जिनके पास प्लस टू में भी कृषि ऐछिक विषय हो आगे कृषि विश्वविद्यालयों में उच्चतर अध्यन के लिये दाखिला मिले।
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