Saturday, July 23, 2011

सुन्ना पड़ा निडाना गाम का गोरा



कपास की बीजाई अर वा भी कोडे होकर। देख्या इसा नजारा अक किसे कंपनी नै बी.टी.कपास की बीजाई के बहाने म्हारे सारे किसान कोडे कर लिए हों। मैं तो इस शर्मनाक स्तिथि से बचने के लिए अब तक देशी कपास की ही बो लिया करता। न ज्यादा उर्वरक अर न ज्यादा खेचला। कीटनाशकों के इस्तेमाल का तो मतलब ही नही फेर भी 27-28 मन किले की लिकड़ आया करदी। पर पिछले साल चुचलये की तरह आये कपास के भा नै मेरी अनीता का मन भी मोह लिया। अर वह न्यून कहन लगी, "जाये रोये सारा देश बी.टी.बोण लाग लिया। अर तू इब तक इस देशी के पाछै पड़ रह्या सै।" चूल्हे धोरै के मैदान का चतुर खिलाड़ी, मैं कदे नही रहा। इसीलिए मैने भी इबकै एक किले में बी.टी.कपास की बीजाई कर डाली। भला हो कृषि तकनीशियनों का जिन्होंने कपास बोने की मशीन इजाद कर डाली। इसी मशीन का प्रयोग करते हुए, मैं बीजाई के समय कोडा हों ते बच पाया।
पर सची बताऊँ अक मेरे इब तक भी बीज के नाम पर 450 ग्राम बिनौले के लिए 1000 रुपये जेब हल्की होना पच नही पाया। म्हारे जींद में बिनोले का भाव 1800-2000 रुपये सै पर
इस बी.टी.कपास के बीज वाला बिनोला तो 250000 रुपये का पड़ेगा। इसा क्सुता जुलम मेने तो अपनी जिंदगी न तो सुना था आर न देखा था। बी.टी.कपास के बीज का भाव तय करने वाले सांड को नाथ घालने वाला समेत सरकार के मैने तो कोई दूर-दूर तक नजर आता नही। अत: बीज के भाव तो कम होने नही अर ना अनीता की बात मेरे पै मोड़ी जा। सांप भी मरज्या अर लाठी भी नही टूटे के चक्र में सूख कै माड़ा होगा वर्ना मेरी के फैक्ट्री बंद होगी।
न्यूँ सोचा करदा अक जै इन सात समुंदरी पर बी.टी.बीजो को कपास में घरा ए लुढाले अर उननै बो देवां तो के फर्क पड़े। म्हारे कृषि वैज्ञानिक न्यूँ कहं सै अक रणबीर बी.टी.आले बीज तो हाईब्रिड हों सै। इन को तो हर साल बाज़ार से खरीद कर ही बोना होता है। नही तो ये पैदावार नही देंगे।
भला हो भैरों खेडा के राजेश का जिसने इस साल पिछले साल की कपास में से ही बिनौले निकाल कर अपने खेत में चुबो दिए। एक किले में दो किलो के हिसाब से। अर शेर ने बो भी दिए पुरे ढाई किले। काट्या क्लेश,
काट्या रोग।