Thursday, September 15, 2011

बी.टी.कपास का जहर- पक्षपाती जहर

आज सुबह डांगर-ढोर की कर कै अर नीता कै हाथ क़ी चाय पीकर घूमने लिकड़ा था अक गाम कै गोरै तानु लम्बरदार से हेट-फेट हो गयी। नाम तो तानू का महा सिंह की माँ नै बड़े चाव से अपने पोते का कप्तान धरा था। टेमसर सरकारी स्कूल में भी घाल्या। बात-बात पे सवाल अर बाल की खाल तारण पै लाग्या रहा। सवाल दर सवाल करन आला बालक किसनै सुहावै था। स्कूल में अध्यापकों अर घर पै घरआलाँ तै कप्तान भी नही ओटा गया। नतीजा यू लिकड़ा अक कप्तान फौज में कप्तान भर्ती होना तो दूर का सपना सिपाही भर्ती होन जोगा भी नही पढ़ पाया और इस दुनिया में चढ़ते सूरज को सलामी देने वालों नै इस कप्तान को कप्तान भी नही रहन दिया बल्कि तानू बना कर छोड़ दिया। पर समय अर स्थान की बलवानी नै तानू को लम्बरदार बनने का मौका तो दे दिया। इतना कुछ खो कर भी तानू नै सवाल पूछन अर बहस करन की बाण नही छोड़ी। आज तड़के ऐ भी भिड़ते ही न्यूं बोल्या," रै कीट-ज्ञानियों न्यू तो बताओ अक इस बी.टी.कपास कै कण-कण में मौजूद यू जहर रस चूसक कीड़ों को क्यों नही ख़त्म करता? जै चर्वक कीटों की तरह चूसक कीटों को भी मार देता तो जमा ऐ जीस्सा आ जाता।"
तानू की सुन कै, मैं कहन लगा अक तानू यू जहर तो सुंडियों को ही मारता है जबकि कपास में चर्वक कीड़े तो और भी घने ऐ सै।
इतनी तानू पै कीत उट्टे थी। झट टाड कै पड़ा, "रै बोलीबुच्चो, बी.टी.के इस जहर नै तो आपनी पुराणी कहावत(भैंस बड़ी की अक्ल) भी झूठी गेर दी। भैंस तो इतनी सयानी हो गयी कि बी.टी.कपास के बिनौले को खुश होकर नही खाती। बालकों कि तरह भलो-भलो कर खुवाना पड़ता है। घरां सोपे में रखी बी.टी.कपास में लोट मारण तै तो चूहे भी परहेज़ रखते हैं। फेर थाम क्यों सुंडियों अर चर्वक कीटों के फेर में पड़ रे सो।"
इतनी सुन कै मेरी तो खोपड़ी घूम गी अर माफ़ी मांग कै जंगल-पानी तै निफराम होन ताहि खेताँ क़ी तरफ सरक लिया।
गामाँ में इब बणी तो रही नही। निफराम होण का ठिकाना भी बी.टी.कपास कै खेत तै न्यारा कित पावै था।
समय सही था अर स्थान भी माकूल था ऊपर तै बीड़ी पीन का हरियाणवी फार्मूला भी ला कै देख लिया पर आज तो तानू के ताने आगै सब फेल होगा। लींड जमा सीकर में चढ़ग्या। सारे बाणे बजा कै निराश हो घरां पहुँच कै चुपचाप बैठक में लेट गया।
रह-रह कै तानू की बात ध्यान में आवै। पड़े-पड़े कपास कीटतंत्र के पिछले चार साल पर नजर मारी तो पाया अक इन चार सालों से शहद की देशी मक्खियों ने बी.टी. कपास के फूलों पर नही बैठने का पंचायती फैसला कर लिया हैइटालियन मक्खियों के नेतृत्व ने भी गणतंत्री सरकारों की तर्ज़ पर अपनी प्रजाति को इन बी.टी.कपास के फूलों से दूर रहने की चेतावनी जारी कर राखी हैपहाड़ी म्हाल की मक्खी जरुर नज़र आई सै पर इनकी संख्या भी लगातार कमी होती देखी जाने लगी है। कहने वाले तों न्यूँ भी कह दे सै अक माल की मक्खी तो वैसे ही कम हो रही सै। इनका बी.टी.कपास तै के लेना-देना। पर हमने तो कपास के खेत में ही सांठी के छोटे-छोटे फूलों पर इन मक्खियों को परागकण व् मधुरस के लिए मेहनत करते खूब देखा है। तेलन, चैफर बीटल, भूरी पुष्पक बीटल व् स्लेटी भुंड जैसे शाकाहारी चर्वक कीटों की संख्या भी लगातार घट रही सै। कुबड़े कीड़े अर अर्ध-कुबड़े कीड़े भी बी.टी.कपास की फसल में जमा ऐ कम पावै सै। जिब विचारों की चैन नै क्यूकर ऐ भी थमन का नाम नही लिया तो इगराह गाम में मनबीर धोरै फोन मारा अर आप बीती सुनाई। मनबीर नै पूरी तस्सली तै बात सुनी अर न्यूं बोला, "रणबीर, जमीनी तथ्यों पर आधारित हकीकत को जितनी जल्दी मान लो उतना ही अच्छा, बेमतलब उधेड़बुन में रहन की जरूरत नही दोस्त। कपास की फसल में कीटों का अपने किसानों द्वारा त्यार पिछला पाँच साला लेखा-जोखा तो तानू अर तेरी बात नै जायज ठहराव सै। सही सै अक यू बी.टी.प्रोटीन रस पीकर गुज़ारा करने वाले कीड़ों को तो कुछ नही कहता पर चबा कर खाने वाले कीड़ों के लिए तो जहर ही है। पर यू आपां नै जरुर याद रखना चाहिए अक जहर के घातक प्रभावों का कम-फालतू असर जहर की मात्रा और शारीरिक वजन के हिसाब से ही होता है।" फोन काट्या ऐ था अक बालका नै रोटी खान खातिर आवाज़ मारली। हालाँकि रोटी पौन में नीता मेरी माँ का मुकाबला करती है पर आज तो टूक हलक तै नीचै उत्तरण का नाम नही लेन लागरे। जैसे-तैसे दो-एक रोटी पेट में सुड़ी अर फेर बैठक में आ कर लेटगा। भतेरी सोची अक कुण-कड़े की बी.टी.अर किसा जहर? तू क्यों सोच ठारया सै। जो देश गेल बनेगी-वा तेरी गेल बन जागी। खा-पी अर चादर तान कर सो। पर चादर तानी तो कौन गयी। दिमाग बार-बार सीलोन आला बैंड पकड़े गया। तिनकै के आसरै की आस में डा.दलाल धौरे फोन भिड़ा लिया। यू डा.पदवी आला सै अक म्हारै महा सिंह के कप्तान की ज्यूँ कप्तान सै- इस बात का मनै भी नही बेरया।
फोन ठाते ही डा.बोला, " हाँ! रनबीर बोल। के बात सै।"
बात के सै डा.साहब, मै तो इस बी.टी.नै बांस दिया। या के बीमारी पलै पड़गी, कुछ समझ नही आंदा।
दूसरी साईड तै डा का जवाब आया, "रनबीर इसमें समझन आली के बात सै। हमारी जमीन में टी.बी.आले बैक्टीरिया की जात बेसिलस म्ह की प्रजात थिरुंजिनेंसिस आला
बैक्टीरिया पाया जाता है. इसी बैक्टीरिया से जहर का निर्माण करने वाला एक विशेष खरना-अणु निकाल कर कपास के पौधे में डाल दिया गया है। इस जहरी खरना-अणु का नाम धरा गया-- cry1. अब तो बहुत सारे ढूंढ़ लिए गये पर नाम कै आगै सबकै cry ही लगता है। अब इसनै बनाने अर बेचने वाले रोहा-रूहाट करेंगे या बरतनिये किसान धुहाथड़ मारकै रोवेंगे- इसका मनै भी नही बेरया।"
मैं या कौन पुछदा डॉ.साहब, मैं तो न्यूँ पुछू था अक यू बी.टी.जहर पक्षपाती क्यूँ सै? इसका रासायनिक सूत्र के सै?
"इसका जवाब तो मेरे पास नही है, रणबीर। इंतजार कर, कोई ज्ञानी-धानी फेसबुक पर तेरी इस पोस्ट को पढ़ कर जवाब दे-दे। या फेर डा.वंदना शिवा, डा.सुमन सहाय या डा.देवेन्द्र शर्मा जैसे धुरुन्धरों के पास इधर-उधर से ई-मेल ढूंढ़कर इस सवाल का सही-सही जवाब पता कर ले।", डा। दलाल ने तो अपना पल्ला झाड़ लिया.

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